सार
Jalore : रबी सीजन में केंद्रीय सहकारी बैंक से सम्बद्ध 137792 पॉलिसी फसल बीमा योजना में पोर्टल पर हुई अपलोड, गत रबी सीजन के मुकाबले आधे से कम पॉलिसी हुई सृजित, अब फसल बीमा कट ऑफ डेट 31 दिसंबर से 15 जनवरी और पोर्टल पर पॉलिसी अपलोड करने की डेट 15 जनवरी से 31 जनवरी तक बढ़ाई

विस्तार
जालोर । डिजिटल डेस्क | 9 जनवरी | जिले में ग्राम सेवा सहकारी समितियों के माध्यम से ऋण लेने वाले किसानों का इस बार फसल बीमा योजना से मोह भंग होने लग गया है। इस बीमा योजना में फसल खराबे पर बीमा कंपनी की ओर से जिले में पिछले दो वर्षो में बीमा क्लेम देने में बरती गई मनमानी के चलते इस बार रबी सीजन में सोसायटी के ऋणी किसान सदस्यों ने इस बीमा योजना से मुँह मोड़ लिया है। वही रबी सीजन में ग्राम सेवा सहकारी समितियों के माध्यम से पोर्टल पर अपलोड़ पॉलिसी की समीक्षा से यह जानकारी सामने आई हैं कि इस रबी सीजन में 50 फिसदी से कम पॉलिसी अपलोड हुई है। हालांकि फसल बुवाई के लिए सोसायटी से अग्रीम ऋण लेने वाले किसानों को फसल खराब होने से नुकसान भरपाई के लिए सरकार लंबे समय से फसल बीमा करवाती आ रही है, लेकिन किसानों की इन बीमा योजना में कोई रुचि नहीं है. अधिकांश किसान ये बीमा करवाते हैं, लेकिन जब फसल खराब होता है, तब भी उन्हें बीमा क्लेम नहीं मिल पाता है, हालांकि इसका प्रीमियम जब किसान भरता है, तो उससे काफी कम राशि ही देनी पड़ती है. इसकी करीब 80 फीसदी राशि केंद्र और राज्य सरकार वहन करती है. इसके बावजूद स्वतः अपनी मर्जी से फसल बीमा करवाने वाले किसानों की संख्या आधी फीसदी भी नहीं है । गौरतलब हैं कि वर्ष 2023 के दौरान जालोर जिले में बारिश और ओलावृष्टि की वजह से सबसे ज्यादा इसबगोल की फसल खराब हुई हैं. इसबगोल के बीज ओला गिरने से जमीन पर गिर गए थे, उस समय सामने आई विभागीय रिपोर्ट के आधार पर इसबगोल की 80 प्रतिशत फसल खराब वही जीरा, सरसों, अरण्डी, तारामीरा, गेहूं समेत अन्य फसलों में 30-30 प्रतिशत की खराबी दर्ज हुई थी, इसबगोल की जिले में 35600 हेक्टेयर में खड़ी 2.13 अरब की फसल नष्ट हो गई थी । असल में जालोर जिले के सांचौर, चितलवाना, रानीवाड़ा, भीनमाल में सबसे ज्यादा किसानों को नुकसान हुआ था ।

आधे से कम किसानों का हो पाया बीमा
जिले में किसानों को ब्याज मुक्त योजना में ऋण मुहैया कराने वाली ग्राम सेवा सहकारी समितियों द्वारा ऋणी सदस्यों का स्वैच्छिक तौर पर बीमा किया जाता है, जिसमें किसान की ओर से बुवाई की गई फसलों की लिखित्त में उपलब्ध सूचना के आधार पर सोसायटी बीमा पॉलिसी बनाती हैं और उसे सीसीबी के मार्फत कंपनी को भिजवाया जाता है। लेकिन इस बार रबी सीजन में 137792 बीमा पॉलिसी ही जिले की ग्राम सेवा सहकारी समितियों की ओर से पोर्टल पर अपलोड की गई हैं, जबकि गत साल यह ही आंकड़ा तीन लाख से अधिक था ।
बीमा कंपनी ने भरी जेब
जिले में किसानों का आरोप है कि हमारे साथ बीमा कंपनी धोखा कर देती हैं. फसल खराबा का आकलन क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट से ही किया जाता है. इसमें सर्वेयर अपने मनमर्जी से ही डिटेल भर देता है. किसान की पूरी बात नहीं मानी जाती और इसके चलते उन्हें बीमा का क्लेम पूरा नहीं मिल पाता है. कई किसान तो ऐसे हैं, जिनका कहना है कि प्रीमियम से भी आधी राशि उन्हें नहीं मिली है. विभागीय आंकड़े के अनुसार बीते दो सालों से करोड़ों रुपए का प्रीमियम बीमा कंपनी को मिलने के बावजूद किसानों को नाममात्र के क्लेम दिए गए हैं. इस पर किसानों का कहना है कि कंपनी अपनी जेब इस प्रीमियम के जरिए भर रही है.
किसानों के लिए कई पेचीदगियां, नहीं मिलता फायदा
ग्राम सेवा सहकारी समितियों में कार्यरत कर्मचारियों के संगठन राजस्थान बहुउद्देशीय सहकारी सोसायटी कर्मचारी यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष हनुमानसिंह राजावत का कहना है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में कई पेचीदगियां हैं, इसलिए यह किसानों को रास नहीं आ रही है. सरकार की इस स्कीम में कई परेशानी है. बीमा कंपनियां प्रीमियम तो सहजता से काट लेती हैं, लेकिन विपत्ति या आपदा आ जाए, तब मदद नहीं मिलती है. किसान व सरकारी एजेंसी सर्वे करके रिपोर्ट भेजते हैं, उसके बावजूद भी बीमा कंपनियां कई तरह के अड़ंगे लगा देती हैं. उन्होंने कहा कि किसानों के साथ कुठाराघात किया जाता है, चक्कर कटवाएं जाते हैं, लेकिन उसे कुछ नहीं मिलता है.
सरकारी विभाग उदासीन
जिले में सहकारी साख आंदोलन से जुड़े सुत्रो का आरोप है कि फसल खराब होने के बाद किसान जब पोर्टल पर सूचना देता है, तब एक खसरा नंबर डालने के बाद पोर्टल बंद हो जाता है. सबकी सूचना डालने पर कई घंटे लग जाते हैं. इन परेशानियों के चलते किसान बीमा कंपनियों से मुंह मोड़ रहा है. सुत्रो ने आरोप लगाते हुए कहा कि इसके पीछे मूल कारण सरकार और प्रशासन की उदासीनता और बीमा कंपनियों का भ्रष्टाचार है. हमारा मानना है कि किसानों को लाभ मिलना चाहिए. खराबे की सूचना देने के लिए पंचायत स्तर पर एक कार्यालय होना चाहिए, यह लोग ऑनलाइन या फोन के जरिए शिकायत लेते हैं, जो कि हर कोई नहीं कर पाता. किसानों को बीमा क्लेम मिलने का भी पारदर्शी फॉर्मूला होना चाहिए.