दी चूरू सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक में व्यवसाय विविधीकरण पर कार्यशाला आयोजित

सार 

Churu : दी चूरू सेंट्रल को- ऑपरेटिव बैंक के प्रबंध निदेशक मदनलाल ने सहकारी समितियों की आर्थिक सुदृढ़ता पर जोर देते हुए कहा कि समितियों को बदलते आर्थिक परिवेश के अनुरूप अपने कार्यों में विविधता लानी चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकारी योजनाओं और अनुदानों का सही उपयोग कर समितियां अपनी सेवाओं का विस्तार कर सकती हैं

विस्तार 

चूरू, 18 मार्च। दी चूरू सेंट्रल को- ऑपरेटिव बैंक के प्रधान कार्यालय में मंगलवार को प्राथमिक कृषि साख समितियों के व्यवस्थापकों के लिए राजस्थान इंस्टीट्यूट ऑफ को-ऑपरेटिव एजुकेशन एंड मैनेजमेंट द्वारा व्यवसाय विविधीकरण पर एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई। सत्र संयोजक एवं राइसेम सहायक रजिस्ट्रार सुलोचना मीणा ने कहा कि व्यवसाय विविधीकरण से सहकारी समितियाँ आत्मनिर्भर बन सकती हैं। उन्होंने कहा कि आज के समय में समितियों को पारंपरिक कृषि ऋण प्रदान करने के साथ-साथ अन्य व्यावसायिक गतिविधियों में भी अपनी भागीदारी बढ़ानी होगी, जिससे उनकी आय बढ़े और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिले। मुख्य प्रबंधक सर्वेश वर्मा ने कहा कि समितियों के सफल संचालन के लिए पारदर्शिता, डिजीटल लेन-देन, नवाचार और कुशल वित्तीय प्रबंधन आवश्यक है। उन्होंने बताया कि जो समितियां आधुनिक तकनीक और डिजीटल बैंकिंग को अपनाएंगी, वे अधिक लाभकारी सिद्ध होंगी।

दी चूरू सेंट्रल को- ऑपरेटिव बैंक के प्रबंध निदेशक मदनलाल ने सहकारी समितियों की आर्थिक सुदृढ़ता पर जोर देते हुए कहा कि समितियों को बदलते आर्थिक परिवेश के अनुरूप अपने कार्यों में विविधता लानी चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकारी योजनाओं और अनुदानों का सही उपयोग कर समितियां अपनी सेवाओं का विस्तार कर सकती हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक प्रभावी भूमिका निभा सकती हैं।

एमडी मदनलाल शर्मा ने बताया कि कार्यशाला में ‘सहकार से समृद्धि‘ एवं अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष को विशेष रूप से सम्मिलित किया गया। इसका उद्देश्य सहकारी समितियों को आधुनिक व्यवसायिक संभावनाओं की जानकारी देना, नवाचार को अपनाने के लिए प्रेरित करना, डिजीटल तकनीकों का समावेश करना और वित्तीय प्रबंधन को सुदृढ़ बनाना था। कार्यशाला में सहकारी समितियों को पारंपरिक कार्यप्रणाली से आगे बढ़कर विविध व्यवसायों को अपनाने के लिए प्रेरित किया गया।

आधुनिक तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता पर भी बल दिया

एमडी मदनलाल शर्मा ने बताया कि कार्यशाला में चर्चा के दौरान बताया कि समितियां कृषि आधारित उद्योगों, जैविक खेती, डेयरी, पशुपालन, उपभोक्ता सेवा केंद्र, खुदरा व्यापार, जैविक उत्पादों के विपणन एवं अन्य संभावित व्यवसायों को अपना सकती हैं। इससे उनकी आय में वृद्धि होगी और आर्थिक रूप से सशक्त बन सकेंगी। सहकारी समितियाँ सरकारी योजनाओं का लाभ उठाकर अपने व्यवसाय का विस्तार कर सकती हैं। इसके साथ ही, डिजिटल बैंकिंग, ऑनलाइन भुगतान प्रणाली और आधुनिक तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता पर भी बल दिया गया, जिससे समितियां अधिक कुशलता से कार्य कर सकें।

व्यवसायिक विस्तार से ग्रामीण रोजगार के नए अवसर होंगे उत्पन्न 

कार्यशाला में बताया कि सहकारी समितियों के व्यवसायिक विस्तार से ग्रामीण रोजगार के नए अवसर उत्पन्न होंगे, जिससे गांवों में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। समितियां कृषि आधारित स्टार्टअप्स, जैविक उत्पाद निर्माण, ग्रामीण पर्यटन एवं खाद्य प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित कर सकती हैं, जिससे किसानों और ग्रामीण उद्यमियों को नए अवसर मिलेंगे। सहकारी समितियों को बीबीएसएसएल (भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड), एनसीईएल(राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड) और एनसीओएल (नेशनल को-ऑपरेटिव ऑर्गेनिक लिमिटेड) की सदस्यता लेने की प्रक्रिया का भी प्रशिक्षण दिया गया।

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