जालोर 21 दिसम्बर। वर्तमान में जिले में रात का तापमान अत्यधिक कम हो जाने एवं हवा नहीं चलने के कारण पाला एवं शीतलहर की संभावना के देखते हुए कृषि विभाग जालोर द्वारा कृषकों को फसलों के बचाव के लिए उपाय बताए गए है।
कृषि विभाग(विस्तार) के उपनिदेशक डॉ. आर.बी. सिंह ने बताया कि पाला पडने से लगभग सभी फसलों में नुकसान होता है। पौधों की पत्तियां व फूल झुलस कर झड जाते है तथा अधपके फल सिकुड जाते है। फलियों व बालियों में दाने नहीं बनते है व बन रहे दाने सिकुड जाते है। इस प्रकार फसलों एवं फलदार वृक्षों में उपज में भारी नुकसान होता है। अतः शीतलहर व पाले से फसलों की सुरक्षा की जानी आवश्यक है।
उन्होंने बताया कि किसान पौधशालाओं के पौधों एवं सीमित क्षेत्र वाले उद्यानों/नगदी सब्जी वाली फसलों में भूमि के ताप को कम न होने देने के लिए फसलों को टाट, पोलिथिन अथवा भूसे से ढ़क देवें। वायुरोधी टाटियां, हवा आने वाली दिशा की तरफ यानि उत्तर-पश्चिम की तरफ बांधे। नर्सरी, किचनगार्डन एवं कीमती फसल वाले खेतों में उत्तर-पश्चिम की तरफ टाटियां बांधकर क्यारियों के किनारों पर लगायें तथा दिन में पुनः हटायें। जब पाला पडने की सम्भावना हो तब फसलों में हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। नमीयुक्त जमीन में काफी देरी तक गर्मी रहती है तथा भूमि का तापक्रम एकदम कम नहीं होता है। जिससे तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं गिरेगा और फसलों को पाले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।
उन्होंने कृषकों को सुझाव दिया है कि जिन दिनों पाला पडने की संभावना हो उन दिनों फसलों पर घुलनशील गन्धक एग्रीकल्चर ग्रेड 0.2 प्रतिशत (2 ग्राम प्रति लीटर पानी) में घोल बनाकर छिडकाव करें। ध्यान रखे कि पौधों पर घोल की फुहार अच्छी तरह लगे। छिडकाव का असर दो सप्ताह तक रहता है। यदि इस अवधि के बाद भी शीत लहर व पाले की संभावना बनी रहे तो छिडकाव को 15-15 दिन के अन्तर से दोहरातें रहे या थायो यूरिया 500 पी.पी.एम. (आधा ग्राम) प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिडकाव करें। सरसों, गेहूॅ, चना, आलू, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने में गन्धक का छिडकाव करने से न केवल पाले से बचाव होता है, बल्कि पौधों में लौहा तत्व की जैविक एवं रासायनिक सक्रियता बढ जाती है जो पौधों में रोग रोधिता बढाने में एवं फसल को जल्दी पकाने में सहायक होती है।
उन्होंने बताया कि दीर्घकालीन उपाय के रूप में फसलों को बचाने के लिये खेत की उत्तरी पश्चिमी मेंडो पर तथा बीच-बीच में उचित स्थानां पर वायु अवरोधक पेड जैसे- शहतूत, शीशम, बबूल, खेजडी, अरडू आदि लगा दिये जाये तो पाले और ठंडी हवा के झौकां से फसल का बचाव हो सकता है। अधिक जानकारी के लिए किसान सेवा केन्द्र अथवा कृषि कार्यालय में सम्पर्क कर सकते हैं।