अतिरिक्त चार्ज के सहारे चल रहीं है सहकारी समितियां

  • 21 में से 7 समितियां चल रही है अतिरिक्त चार्ज के भरोसे
  •  सहकारिता विभाग की योजनाओं के सफल संचालन पर सवाल

सांचौर/जालोर I डिजिटल डेस्क I 4 जनवरी I . सहकारिता विभाग के अधीन संचालित ग्राम सेवा सहकारी समितियां इन दिनों अयोग्यताधारी व्यक्तियों के भरोसे संचालित हैं। सांचौर में संचालित करीब 21 ग्राम सेवा सहकारी समितियों में से 14 समितियों में ही व्यवस्थापक कार्यरत हैं। ऐसे में 7 सहकारी समितियां अतिरिक्त चार्ज के भरोसे संचालित हो रही हैं। जबकि सांचौर शाखा में करीब 9 हजार ऋणी सदस्य किसान हैं।
जबकि इन व्यवस्थापकों का मुख्य कार्य किसानों को अल्पकालीन ऋण वितरण, मिनी बैंकों के द्वारा अमानतों का संग्रहण व रिकॉर्ड संधारण, सामाजिक योजनाओं का भुगतान, राशन सामग्री का कार्य करने की जिम्मेदारी हैं, लेकिन समितियों में पर्याप्त व्यवस्थापक नहीं होने से सहकारिता विभाग की ओर से संचालित योजनाओं का सफल संचालन होने में खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।


गौरतलब है कि अतिरिक्त चार्ज के नाम पर व्यवस्थापकों को कोई भत्ता भी नहीं दिया जा रहा है। ऐसे में अतिरिक्त चार्ज के चलते व्यवस्थापकों पर काम का बोझ अधिक होने से मानसिक तनाव तक में रहने को मजबूर हैं। इसमें चितलवाना, रानीवाड़ा क्षेत्र में ग्राम सेवा सहकारी समितियों में व्यवस्थापकों के पद रिक्त हैं। यह स्थिति अकेले जालोर जिले की ही नहीं है बल्कि राज्य के अन्य जिलों की भी है, लेकिन सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं हैं। जबकि समितियों से मुख्य रूप से किसान जुड़े हुए हैं। जो कि खाद-बीज एवं ऋण सहित अन्य कार्य समितियों के जरिये करते हैं।

2 व्यवस्थापक संभाल रहे हैं 6 समितियां

सहकारिता विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक सांचौर उपखण्ड में कुल 21 ग्राम सेवा सहकारी समितियां संचालित हैं, लेकिन ये समितियां मात्र 14 व्यवस्थापकों के भरोसे हैं। इनमें से डेडवा व्यवस्थापक के पास 2 समितियों का अतिरिक्त चार्ज हैं। खास बात यह है कि ये व्यवस्थापक इन 3 समितियों का कैसे संचालन कर रहा हैं यह सवाल विभाग की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े कर रहा हैं।
वहीं, हाडे़तर व्यवस्थापक के पास 2 सहकारी समितियों का अतिरिक्त चार्ज है। ऐसे में इन व्यवस्थापकों का प्रतिदिन सहकारी समितियों पर बैठना तक मुश्किल हो जाता है। कभी आधा घण्टे किस सहकारी समिति में तो आधे घण्टे किस समिति में जाकर काम संभालना पड़ रहा है। ऐसे में कुछ समितियां तो काम का बोझ अधिक होने से पटरी से तक उतरती दिखाई दे रही हैं।

सत्यापन बना परेशानी

सहकारिता विभाग की ओर से बायोमैट्रिक सत्यापन करने के उपरांत एफआईजी के जरिए ऋण उपलब्ध कराया जाता है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में इंटरनेट की कमी के चलते भूमि पुत्रों को इधर-उधर भटकना पड़ता है। इसके अलावा बुजुर्गों के बायोमैट्रिक पर फिंगर नहीं आने से ऋण से भी किसानों को वंचित होना पड़ता है, लेकिन सरकार की ओर से ऐसे बुजुर्ग किसानों के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था भी नहीं की गई है।ऐसे में किसानों को सेठ-साहूकारों से कर्ज लेना पड़ता है।

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