पहले घर-घर जाते थे प्रत्याशी, अब सोशल मीडिया से मतदाता तक पहुंचने का प्रयास

प्रतीकात्मक फोटो

जालोर/सांचौर । डिजिटल डेस्क | 5 नवम्बर | आगामी विधानसभा निर्वाचन के लिए लगभग प्रत्याशियों के नामों की घोषणा हो चुकी है, प्रत्याशियों ने नामांकन फार्म जमा करना भी शुरू कर दिया है। करीब एक सप्ताह बाद से प्रचार-प्रसार भी शुरू हो जाएगा। यूं तो उम्मीदवार प्रचार-प्रसार के लिए कई तरह के माध्यमों का उपयोग करते हैं जिसमें घर-घर जाकर संपर्क करना, बैनर, फलेक्स लगवाकर वोट देने की अपील, समाचार पत्रों में विज्ञापन शामिल है।

वही, चुनावी माहौल में क्षेत्र के मतदाताओं से बातचीत करने पर उनका कहना हैं कि पहले मतदाता आसानी से प्रत्याशियों के बहकावे में आ जाता था लेकिन अब मतदाता शिक्षित हो गया है। जागरूक हो गया है जिससे वह आसानी से प्रत्याशियों के चुनावी वादों के फेर में नहीं पड़ता है।

प्रचार-प्रसार के तरीकों में आया काफी अंतर

सांचौर विधानसभा क्षेत्र के बुजुर्ग कार्यकर्ताओं ने बताया कि पहले और अब उम्मीदवारों द्वारा किए जाने वाले प्रचार-प्रसार के तरीकों में काफी अंतर आ गया है। अब चुनाव में प्रत्याशी के लिए अपने साथ भीड़ जुटाना आम बात बन गई है। आज से 40-50 साल पहले कार्यकर्ता स्वयं प्रत्याशी के पास आ जाता था। प्रचार सामग्री मांगता था और अपने क्षेत्र में ले जाकर लगाता था। आज तो प्रत्याशियों को कार्यकर्ता की मनुहार तक नहीं करनी पड़ती है। मतदान केन्द्र दूर होने की वजह से पोलिंग एजेंट बनाने के साथ ही मतदाताओं के लिए महंगी गाड़ियों की व्यवस्था करनी पड़ती थी। पहले उम्मीदवार अपने समर्थकों के साथ ट्रेक्टर से ही प्रचार-प्रसार में निकल जाते थे जिनकी जगह अब कीमती गाड़ियों ने ली है जिसे प्रत्याशी चुनाव समय के लिए किराये में ले लेते हैं। पहले प्रत्याशी अपने कामों, पार्टी की घोषणाओं को मतदाताओं के सामने रखकर अपने पक्ष में मतदान की अपील करते थे लेकिन इसकी जगह अब प्रत्याशी या उनसे जुड़े राजनैतिक दल या दिग्गज नेता को बुलाकर प्रचार-प्रसार करा रहे हैं।

कई बुजुर्ग कार्यकर्ताओं ने बताया कि आज से सालों पहले उम्मीदवार अपने समर्थकों के साथ बैलगाड़ी में सवार होकर प्रचार-प्रसार के लिए निकला करते थे। कई बार प्रचार करते-करते काफी दूर निकल आने के कारण वे उसी गांव में रात भी रूक जाया करते थे और रात्रि चौपाल लगाकर अपने वादे, घोषणाओं को आमजनों के सामने रखते थे। इसके अलावा घरों की दीवारों में उम्मीदवारों के समर्थन में तरह-तरह के नारे लिखे जाते थे, जो अब कम ही दिखाई देते हैं। पूरा शहर प्रत्याशियों के चुनाव चिन्हों वाले रंग-बिरंग पतंगों से सजा नजर आता था अब इनकी जगह बड़े-बड़े फ्लेक्सों, बैनरों ने ली है।

कई बुजुर्गों मतदाताओं ने बताया कि कई साल पहले तक दीवारों पर पोस्टर चिपकाने के साथ ही वाल पेंटिंग करानी पड़ती थी। उस समय फ्लेक्स नहीं हुआ करते थे। पहले घरों तक पर्चियां पहुंचाने को बड़ी उपलब्धि माना जाता था जो अब कंप्यूटर से आसानी से पर्ची तैयार हो जाती हैं। यही नहीं समय के साथ चुनाव लड़ना महंगा हो गया है। पहले विधायक प्रत्याशी के चुनाव खर्च की सीमा 50 हजार रुपए हुआ करती थी, जो अब बढ़कर 40 लाख रुपए कर दी गई है। मतदाता भी अब पूर्व की अपेक्षा अधिक सजग हो गया है।

सोशल मीडिया में बढ़ी सक्रियता

आज तमाम तरह के प्रचार-प्रसार माध्यमों की तुलना में सोशल मीडिया वॉट्सएप, फेसबुक, ट्विटर आदि का उपयोग ज्यादा किया जा रहा है। उम्मीदवारों का मानना है कि आज लोग सोशल मीडिया में ज्यादा सक्रिय है, इसलिए मतदाताओं तक अपना संदेश पहुंचाने, उनसे जुड़ने के लिए सोशल मीडिया सबसे सशक्त माध्यम से बन गया है। चुनावों के समय उम्मीदवार अलग से सोशल मीडिया के जानकारों की एक टीम बनाकर रखते हैं जो लगातार उम्मीदवारों के दौरों, उनकी घोषणाओं के साथ ही उनके पक्ष में मतदान करने की अपील करते दिखाई दे रहे हैं।

चुनाव आयोग ने कड़े किए नियम

आज चुनाव आयोग उम्मीदवारों के एक-एक रुपए के खर्च पर नजर रखता है, ताकि चुनाव में उम्मीदवार निर्धारित से अधिक राशि खर्च न कर सकें। वहीं कई बुजुर्गों ने बताया कि सालों पहले आज जैसी कड़ाई नहीं थी, लेकिन जैसे-जैसे प्रत्याशियों द्वारा चुनाव में अधिक से अधिक धन-बल का उपयोग किया जाने लगा तो चुनाव आयोग ने भी सख्ती करना शुरू कर दिया। उम्मीदवार किसी भी अनैतिक माध्यमों से मतदाताओं को प्रभावित न कर सकें इसके लिए प्रशासन द्वारा जिले में जगह-जगह नाके बनाकर चेकिंग की जा रही है। पिछले करीब एक पखवाड़े में ही लाखों रुपए नगद जब्त की गई हैं । क्योंकि प्रशासन द्वारा जिले की सीमाओं में जो चेक पोस्ट लगाई गई हैं उनमें से गुजरने वाले वाहनों की सघन जांच की जा रही है। यदि नकदी को ले जाने वाले व्यक्ति द्वारा उनका हिसाब नहीं दिया जाता है तो उसकी जब्ती की जा रही है।

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