सहकारी समितियों से ऋण लेने वाले किसानों का कहना हैं कि ऋण माफी होने के पांच सालों में हमारी स्वीकृत साख सीमा के अनुरुप आज दिन तक पूरा ऋण नहीं मिल पाने के कारण फसल बुवाई में हर समय परेशानी आती है और मजबूरन हमें सेठ-साहुकारों से कर्जा लेकर बुवाई करनी पड़ती है।

जालोर । डिजिटल डेस्क | 11 नवम्बर | बिजली, उर्वरक-खाद की किल्लत व अतिवृष्टि से जूझ रहे जालोर व सांचौर जिले के किसान अब खुद को संभालने के लिए खेतों की ओर रुख कर चुके हैं। लेकिन, जिले में केन्द्रीय सहकारी बैंक प्रबंधन की मनमानी व हठधर्मिता से ऋण की प्रक्रिया में उलझने से रबी की बुवाई पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। किसानों को स्वीकृत साख सीमा पर सहकारी समितियां से फसली ऋण पूरा नहीं मिल रहा है। आधा अधूरा ही ऋण मिलने से किसान पशोपेश में है। इधर, आर्थिक संकट से घिर रहे किसान अब सेठ-साहूकारों से ऋण लेने को मजबूर हो रहे हैं।
बढोतरी नहीं होने के कारण समस्या
अमूमन फसली ऋण में स्वीकृत साख सीमा के अनुरुप संतोषप्रद संचालन करने पर हर वर्ष ऋण सीमा में वृद्धि की जाती है। मगर इस वर्ष के रबी सीजन में दिए जाने वाले ऋण में बढ़ोतरी नहीं किए जाने की जानकारी सामने आई है। वहीं नए किसानों को ऋण ना दिए जाने के मामले भी जानकारी में रहे है। ऐसे में बैंक के नए नियम कायदों से क्षेत्र के किसानों को भारी परेशानी उठानी पड़ रही है ।
केन्द्रीय सहकारी बैंक की सहकारी समितियों में इन दिनों किसानों द्वारा खरीफ ऋण वसूली की जितनी राशि जमा करवाई जाती है, उतनी ही राशि का ऋण किसानों को रबी ऋण के तौर पर दिया जा रहा है। वही, बीमा योजना के बीमित किसानों को बीमा प्रीमियम की राशि के तौर पर वसूली अलग से जमा करवानी पड़ रही है। इतना ही नहीं जहां जिलेभर में ग्राम सेवा सहकारी समितियों के माध्यम से सीजनली ऋण लेने वाले किसानों की संख्या 1 लाख 20 हजार से अधिक है, लेकिन जिले में जिन किसानों की साख सीमा डेढ़ लाख स्वीकृत हैं, उन किसानों को भी सीसीबी के मार्फत सहकारी समितियां स्वीकृत साख सीमा के अनुरुप पूरा फसली सहकारी ऋण वितरण नहीं कर पाई है। हालांकि जिस वर्ष किसानों के फसली सहकारी ऋण को माफ किया गया था, उससे पूर्व साख सीमा के अनुरुप ही पूरा ऋण वितरण किया जाता था । इस संबंध में किसानों और सहकारी साख आंदोलन से जुड़े सुत्रो का कहना हैं कि जिले में AC कमरों में बैठे जिम्मेदारों की अनदेखी और मनमौजिता के चलते फसली सहकारी ऋण वितरण का ढर्रा बिगड़ गया है ।

 
								

 
                                             
                                             
                                            