सार
Rajasthan : ग्राम सेवा सहकारी समितियों (Pacs) से लेकर राज्य स्तरीय सहकारी संस्थाओं के चुनाव करवाने की जरूरत जताते हुए सहकार नेता सूरजभानसिंह आमेरा ने कहा कि सहकारी संस्थाओं के चुनाव करवाने से सहकारिता में लोकतांत्रिक व्यवस्था को बहाल करने की दरकार होनी चाहिए

विस्तार
राजस्थान | डिजिटल डेस्क | 13 नवम्बर । राजस्थान में किसी भी पार्टी की सरकार रही हो, सभी ने सहकारी समितियों एवं संस्थाओं के चुनाव के प्रति उदासीन रवैया रखा । जिससे राज्य में ग्राम सेवा सहकारी समितियों (Pacs) से लेकर राज्य स्तर की सहकारी संस्थाओं में एक दशक से अधिक समय बीत जाने के बावजूद भी चुनाव नहीं हो पाये हैं । यहां तक कि केंद्र में सहकारिता मंत्रालय बनने के बाद केंद्रीय सहकारिता मंत्री की अगुवाई में देशभर में ‘सहकारिता से समृद्धि’, ‘सहकारिता में सहकार’ का विजन जमीनी स्तर पर सफलता हासिल कर रहा है । लेकिन ‘सहकारिता से स्वावलंबन’ लाने वाले भारत में सहकारी समितियों एवं सहकारी संस्थाओं के चुनाव की सख्त दरकार है । जब तक सहकारी आंदोलन के सभी कार्यक्रम, योजनाओं और प्रकल्पों में सहकारिता से जुड़े हितधारक सदस्यों और उनके निर्वाचित प्रतिनिधियों का नेतृत्व एवं भागीदारी सुनिश्चित नहीं होगी, तब तक सहकारिता आंदोलन में रिक्तता रहेगी ।
ऐसे में सहकार नेता सूरजभानसिंह आमेरा ने सहकारी संस्थाओं में पारदर्शिता, कर्तव्य निष्ठा और लोकतांत्रिक व्यवस्था का जीवंत रखने के लिए चुनाव की आवश्यकता जताई है । सहकार नेता ने राज्य में सहकारी आंदोलन एवं सहकारी संस्थाओं की मजबूती के लिए और हितधारक सदस्यों किसानों की आर्थिक समृद्धि के लिए प्रदेश की सभी सहकारी समितियों के साथ-साथ राज्य स्तर की शीर्ष सहकारी संस्थाओं के लोकतांत्रिक व्यवस्था को बहाल करने के लिए अविलंब राज्य में सहकारी चुनाव कराने की सख्य आवश्यकता जताई है ।
निर्वाचन नहीं होने लोकतांत्रिक मूल्यों की अवहेलना
राजस्थान में कल से 72वें सहकार सप्ताह का आयोजन होने जा रहा है । जो 14 नवंबर से लेकर 20 नवंबर तक चलेगा । इसकी शुभकामनाएं देते हुए सहकार नेता सूरजभानसिंह आमेरा ने सहकारी संस्थाओं का निर्वाचन करवाने का सकारात्मक निर्णय लेने के लिए सहकारिता मंत्री और मुख्कायमंत्री का ध्यान आकर्षित किया है । उन्होने बताया कि प्रदेश की 1558 ग्राम सेवा सहकारी समितियों, 29 केंद्रीय सहकारी बैंकों, 73 क्रय-विक्रय सहकारी समितियों, 19 भूमि विकास सहकारी बैंकों सहित बनुकर संघ प्रथमिक इकाई समितियों के चुनाव एक दशक से नहीं होना, सीधा-सीधा लोकतांत्रिक मूल्यों की अवहेलना है ।

नेतृत्व के अभाव में सहकारी संस्थाएं कमजोर हुई
सहकारिता आंदोलन की मूल आत्मा, मूल दर्शन एवं सिद्धांत ही उसकी लोकतांत्रित व्यवस्था है, जिसमें प्रत्येक वर्ग के सदस्यों के प्रतिनिधित्व से निर्वाचित संचालक बोर्ड, अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष, निदेशक ही समिति एवं संस्था की जिम्मेदारी निभाते हैं । लेकिन लम्बे अंतराल से चुनाव नहीं होने से पूरी सहकारी व्यवस्था को सरकारी अधिकारियों के हाथ में देकर उन्हें प्रशासक लगाकर अफसरभरोसे छोड़ दिया हैं । सहकार नेता का मानना है कि सहकारिता में पारदर्शिता, कार्य कुशलता और जवाबदेही के लिए निर्वाचित बोर्ड प्रासंगिक हो गए है । पिछले दशकों में अनुभव प्रमाण व आँकड़े स्पष्ट हैं कि सहकारिता के चुनाव के अभाव में हितधारकों प्रवक्ता नेतृत्व के अभाव में सहकारी संस्थाएं कमजोर हुई है ।
सहकारी संस्थाओं में भी निर्वाचित बोर्ड जरूरी
सहकार नेता के अनुसार राज्य की विधान सभा और देश की संसद के आम चुनाव से निर्वाचित सरकार की राज्यपाल एवं राष्ट्रपति शासन से अधिक सुरक्षा एवं महत्ता संवैधानिकता है, उसी तरह सहकारी अधिनियम के तहत सहकारी संस्थाओं में भी निर्वाचित बोर्ड जरूरी हैं । आमेरा ने बताया कि सहकारी समितियों संस्थाओं के नियमित चुनाव नहीं होने से आज राज्य में सहकारी नेतृत्व एवं कॉपरेटर लीडर का अकाल पड़ा हुआ है । वही चुनाव से सहकारिता के विकास, संवर्धन एवं मजबूती के लिए सदस्यों में से प्रवक्ता का नेतृत्व निर्माण होता है ।

प्रशासकों के हाथों में ही सहकारी संस्थाएं
सामान्यतया एक उपखण्ड पर एक ही क्रय-विक्रय सहकारी समिति गठित है। पूरे प्रदेश में 235 सहकारी समितियां हैं। लेकिन सरकार ने 73 केवीएसएस के चेयरमैन पदों पर भी आरसीएस स्तर के अधिकारियों को प्रशासक नियुक्त कर पद सौंप रखे हैं। इसी प्रकार प्रदेश की 23 शीर्ष स्तरीय सहकारी संस्थाओं, 29 केंद्रीय सहकारी बैंकों सहित 17 भूमि विकास बैंकों में भी चेयरमैन का पद भी प्रशासकों के हाथों में ही है। जबकि भूमि विकास बैंकों के चेयरमैन व सीसीबी बैंकों के डायरेक्टर राजनीतिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण पद माने जाते हैं।
शीर्ष सहकारी संस्थाओं में नहीं हुए चुनाव
अपेक्स बैंक में 2016, राजफेड में 1995, कॉनफेड में 2014, एसएलडीबी में 2015, सहकारी मुद्रणालय में 1997, सहकारी संघ में 2016, अनुजा निगम में 1999, तिलम संघ में 2005 से लेकर अब तक प्रशासक नियुक्त हैं। इसी तरह, आवासन संघ और राजस्थान राज्य क्षेत्रीय जनजाति सहकारी विकास संघ उदयपुर में एक बार भी चुनाव नहीं हुए हैं । जबकि राजस्थान राज्य क्षेत्रीय जनजाति सहकारी विकास संघ उदयपुर में स्थापना से लेकर समयसमय पर सरकार द्वारा मनोनीत संचालक मण्डल का गठन किया जा रहा हैं ।



