जोधपुर 27 मई ! जोधपुर हाईकोर्ट ने जनहित याचिका D.B. Civil Writ Petition No. 7328/2021 नन्दलाल बनाम राजस्थान सरकार की सुनवाई करते हुए राजस्थान उच्च न्यायालय की खण्डपीठ के न्यायाधिपति श्री संदीप मेहता व न्यायाधिपति श्री देवेन्द्र कच्छवाहा ने मुख्य सचिव राजस्थान सरकार, सचिव सहकारिता विभाग, रजिस्ट्रार सहकारिता विभाग व 29 जिला केन्द्रीय सहकारी बैकों से जवाब तलब किया।
दायर जनहित याचिका में सहकारी विभाग के अन्तर्गत ग्राम सेवा सहकारी समितियों के कार्मिकों की कोविड़-19 से सुरक्षा के बारे में अत्यन्त महत्वपूर्ण बिन्दु उठाये गये हैं। यह जनहित याचिका नन्दलाल प्रदेशाध्यक्ष राजस्थान सहकारी कर्मचारी संघ के अध्यक्ष द्वारा प्रस्तुत की गई। इसमें अधिवक्ता अशोक कुमार चौधरी ने न्यायालय के सामने तर्क रखा कि राजस्थान में 6722 ग्राम सेवा सहकारी समितियां ग्राम पंचायतों के स्तर पर कार्यरत हैं तथा 29 केन्द्रीय सहकारी बैक जिला स्तर पर है, ये सहकारी समितियां गांवों में किसानों को फसली ऋण, खाद, बीज इत्यादि उपलब्ध करवाती है। अधिवक्ता चौधरी ने बताया कि कोरोना संक्रमण के काल में ये कार्मिक अपनी जान की परवाह किये बगैर किसानों को कर्ज व अन्य सुविधायें दे रहे हैं परन्तु राज्य सरकार इनको बायोमिट्रीक यंत्र उपयोग करने के लिये बाध्य कर रही है। लोन देते समय बायोमिट्रीक यंत्र किसान व ग्राम सेवा सहकारी समिति के कार्मिक द्वारा उपयोग करना होता है। जिससे कोरोनो संक्रमण की संभावना बहुत बढ़ जाती है। हाल ही में गांवों में कोरोना बहुत फैला है व इस संक्रमण की वजह से 19 व्यवस्थापकों की अब तक मृत्यु हो चुकी है। राजस्थान सहकारी कर्मचारी संघ की ओर से राज्य सरकार को ज्ञापन दिया जा चुका है परन्तु सरकार द्वारा अभी तक कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं की गई। वही दूसरी ओर ई मित्रों पर बायोमिट्रीक यंत्र के उपयोग पर राज्य सरकार पहले ही रोक लगा चुकी है तथा भारत सरकार ने भी बायोमिट्रीक यंत्र उपयोग में न लेने के लिये निर्देश दिये है। इस प्रकार ग्राम सेवा सहकारी समितियो के कर्मचारियों की जान के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।
अधिवक्ता अशोक कुमार चौधरी ने न्यायालय को यह भी बताया कि ग्राम सेवा सहकारी समिति के कर्मचारी अपनी जान जोखिम में डाल कर गांवों में सेवा प्रदान कर रहे हैं परन्तु उनको फ्रंटलाईन वर्कर की श्रेणी में नहीं माना गया है तथा उनको न तो कोई चिकित्सा सुविधा दी गई है तथा इन कार्मिकों की मृत्यु के बाद न ही किसी तरह की पेंशन स्कीम दी जा रही है। राज्य सरकार ने संविदा तथा मानदेय पर कार्यरत कर्मचारियों को कोरोना से मृत्यु होने की दशा में 50 लाख रूपये अनुदान देने हेतु पेंशन स्क्रीम लागू की है और राशन डीलर और पत्रकारों को भी इसका लाभ दिया है परन्तु ग्राम सेवा सहकारी समितियों के कार्मिकों को इस योजना से वंचित रखा गया। राजस्थान सरकार के सहकारिता मंत्री उदयलाल आजंना ने भी इन कर्मचारियों कों फ्रंटलाईन वर्कर की श्रेणी में सम्मिलित करने हेतु राज्य सरकार से अनुरोध किया पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की गई।
अधिवक्ता अशोक कुमार चौधरी ने यह भी बताया कि राजस्थान सरकार के अन्य विभागों तथा कई सहकारी समितियों में सेवारत कर्मचारी की आकस्मिक मृत्यु की दशा में उसके आश्रितों को अनुकंपात्मक नियुक्ति दी जा रही है परन्तु ग्राम सेवा सहकारी समितियों के कार्मिकों के आश्रितों को नियुक्ति नहीं दी जाती जो भेदभावपूर्ण व अनुचित है।
राजस्थान उच्च न्यायालय की खण्डपीठ ने उन तर्को से सहमत होकर अप्रार्थीगण से जवाब तलब किया तथा सचिव सहकारिता विभाग को निर्देश दिये कि प्रार्थी के अभ्यावेदन पर बायोमिट्रीक यंत्र के उपयोग में छूट देने के बारे में गहन विचार करे। मामले की आगामी सुनवाई जुलाई के प्रथम सप्ताह में रखी है।