सुरेश प्रभु की अध्‍यक्षता में राष्‍ट्रीय सहकारी नीति का मसौदा तैयार करने के लिए समिति के गठन की घोषणा

आज भारत में लगभग 8.5 लाख सहकारी समितियां हैं, जो करीब 29 करोड़ सदस्यों के साथ पूरे देशभर में फैली हैं. पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभाकर प्रभु की अध्यक्षता में गठित इस समिति में देश के सभी हिस्सों से 47 सदस्यों को शामिल किया गया है.
Announcement of constitution of committee to draft National Cooperative Policy under the chairmanship of Suresh Prabhu

नई दिल्ली I 6 सितम्बर I केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने आज राष्ट्रीय सहकारिता नीति दस्तावेज का प्रारूप तैयार करने के लिए एक राष्ट्रीय समिति के गठन का ऐलान किया है. पीएम नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में ‘सहकार से समृद्धि’ की परिकल्पना को साकार करने के लिए नई राष्ट्रीय सहकारिता नीति बनाई जा रही है. अमित शाह ने हाल ही में घोषणा की थी कि पैक्स (PACS) से ऊपर की सहकारी संस्थाओं के लिए एक समग्र दृष्टिकोण बनाने के लिए जल्द ही एक राष्ट्रीय सहकारिता नीति तैयार की जाएगी. पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभाकर प्रभु की अध्यक्षता में गठित इस समिति में देश के सभी हिस्सों से 47 सदस्यों को शामिल किया गया है. सरकारी प्रेस रिलीज ‘पीआईबी’ के मुताबिक, इस समिति में सहकारी सेक्टर के विशेषज्ञ, राष्ट्रीय,राज्य, जिला और प्राथमिक सहकारी समितियों के प्रतिनिधि, राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के सचिव (सहकारिता) और सहकारी समितियों के पंजीयक तथा केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों के अधिकारी शामिल हैं.

‘नेशनल कॉपरेटिव पॉलिसी’ के क्या हैं उद्देश्य?

नई राष्ट्रीय सहकारिता नीति के दस्तावेज का निर्माण नए सहकारिता मंत्रालय को दिए गए अधिदेश (Mandate) को पूरा करने की दृष्टि से किया जा रहा है. जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ ‘सहकार से समृद्धि’ की परिकल्पना को साकार करना, देश में सहकारी आंदोलन को सशक्त बनाना, ग्राउंड लेवल पर इसकी पहुंच को मजबूत करना, सहकारिता आधारित इकोनॉमिक डेवलपमेंट मॉडल को प्रमोट करना और सहकारिता क्षेत्र को उसकी क्षमता हासिल करने में सहायक नीतिगत, कानूनी एवं संस्थागत अवसंरचना का निर्माण करना है. नई पॉलिसी देश में सहकारिता आंदोलन को और सशक्त बनाने में काफी मददगार साबित होगी.

देश में 8.5 लाख सहकारी समितियां

मौजूदा राष्ट्रीय सहकारिता नीति, सहकारी समितियों के चहुंमुखी विकास और उन्हे जरूरी सहयोग देने, प्रोत्साहित करने और सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से साल 2002 में लागू की गई थी. ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सहकारी समितियां एक स्वायत्त, आत्मनिर्भर और लोकतांत्रिक रूप से प्रबंधित संस्थाओं के तौर पर कार्य कर सकें, जो अपने सदस्यों के प्रति उत्तरदायी हों और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में जरूरी योगदान कर सकें. आज भारत में लगभग 8.5 लाख सहकारी समितियां हैं, जो करीब 29 करोड़ सदस्यों के साथ पूरे देशभर में फैली हैं. ये सहकारी समितियां कृषि प्रसंस्करण, डेयरी, मत्स्यपालन, आवासन, बुनाई, ऋण और विपणन समेत कई गतिविधियों में एक्टिव हैं.

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